...

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तेरी आदत...❣️
शामिल है तू मुझमें ऐसे जैसे,
इन आती-जाती साँसों में रब बसा हो।
कि तेरी आदत सी है कुछ यूँ,
जैसे फ़ज़ाओं से इत्र जुदा नहीं होता।।

इन हर्फ़ों की भी औकात कहाँ,
कि तेरे मेरे एहसासों को समेट पाए।
पाकीज़गी की हद देखिए दुआओं से बढ़कर,
इक-दूजे का कोई शफ़ा नहीं होता।

झुका है सर मेरा तेरे सजदे में,
कुछ तो साज़िश इसमें ख़ुदा की भी होगी।
वरना यूँ ख़ुदा का बनाया इंसा,
पल भर में मोहब्बत का ख़ुदा नहीं होता।।
© shaifali....✒️



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