..बेनाम रिश्ता..
मंज़िल नही थी इस राह की,
ये जानते थे मगर,
बढ़ते रहे साथ तेरे यूँ ही
हर बात से बेख़बर,.....
कुछ मीठे से अल्फ़ाज़ तुम्हारे
मरहम बन जाते थे
कुछ झुलसते जख्मों को हमारे
ठंडक दे जाते थे........
रूह जुड़ गई थी जैसे
एक दूजे से हमारी
बिना बोले भी समझ जाते थे
दिल मे जो बात छुपी थी तुम्हारी........
बिछड़ना है तुमसे एक दिन
दिल को ये...
ये जानते थे मगर,
बढ़ते रहे साथ तेरे यूँ ही
हर बात से बेख़बर,.....
कुछ मीठे से अल्फ़ाज़ तुम्हारे
मरहम बन जाते थे
कुछ झुलसते जख्मों को हमारे
ठंडक दे जाते थे........
रूह जुड़ गई थी जैसे
एक दूजे से हमारी
बिना बोले भी समझ जाते थे
दिल मे जो बात छुपी थी तुम्हारी........
बिछड़ना है तुमसे एक दिन
दिल को ये...