...

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मन...
मन की कथा मन की व्यथा बड़ी गहरी है....
आस लगाये बैठी ये आँखे
उदास सी शामें उजली दोपहरी है.....
ये मन का खेल बड़ा निराला है.....
कभी रात शाम सा अंधेरा छाया....
कभी चाँद सा मन जगमगाया .....
ये बात जरा गहरी है जो तन को न लागी पर मन बन बैठा बैरागी.....
अब बस इतना कहना है
चल फिर उठ लड़ते है खुद से क्यों किस्मत से जगड़ते है....
कुछ कदम पीछे लिए तो क्या
एक नयी लंबी उड़ान भरते है.....
आ चल फिर से गिरते है फिर से सँभलते है.....
आखिर कांटो के दामन मे ही तो फूल खिलते है..💞
© sbs