वृद्धाश्रम
एक रोज़ मैं गई वृद्धाश्रम,
सुना हाल है जहां पे विषम ,
गई वहां तो मैंने देखा,
मस्तक पे संताप की रेखा।
मुख पे झुर्री, सफेद थे बाल,
दुर्बल काया, धीमी चाल।
नेत्रों में प्रतीक्षा की धारा,
दृष्टि को ऐनक का सहारा।
चित्त में भरी हुई निराशा,
करते हुए मृत्यु की प्रतीक्षा।
देख मुझे एक माता बोली,
बड़े बड़े बालक मेरे भोली।
तुझ जैसी एक उसकी बेटी,
गोद में लेकर जिसे सुलाती।
इच्छा अपनी यही जताऊं,
मृत्यु पूर्व उसे मिल पाऊं।
जबसे बेटों ने छोड़ा है,
मेरा चित्त हृदय...
सुना हाल है जहां पे विषम ,
गई वहां तो मैंने देखा,
मस्तक पे संताप की रेखा।
मुख पे झुर्री, सफेद थे बाल,
दुर्बल काया, धीमी चाल।
नेत्रों में प्रतीक्षा की धारा,
दृष्टि को ऐनक का सहारा।
चित्त में भरी हुई निराशा,
करते हुए मृत्यु की प्रतीक्षा।
देख मुझे एक माता बोली,
बड़े बड़े बालक मेरे भोली।
तुझ जैसी एक उसकी बेटी,
गोद में लेकर जिसे सुलाती।
इच्छा अपनी यही जताऊं,
मृत्यु पूर्व उसे मिल पाऊं।
जबसे बेटों ने छोड़ा है,
मेरा चित्त हृदय...