...

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आशा का गुलशन
वफ़ा करके धोखे बहुत खाए हैं,
फिर भी हमने फ़र्ज़ अपने निभाए हैं.
कड़ी धूप में भी दरख्तों के साए हैं,
यही सोचकर हम सफ़र में आए हैं .
उजड़े चमन बागबान ने बसाए हैं,
यही सोचकर हमने कुछ पौधे लगाये हैं.
तूफ़ान के आने पर झुकती हैं दुरवायें,
यही सोचकर वक्त के आगे सर झुकाए हैं.
आज बुरा वक्त है तो कल अच्छा आएगा,
यही सोचकर हमने गम भी गले लगाए हैं.
अब जो होगा अंजाम वो देखा जाऐगा,
यही सोचकर हमने अपने हौसले बढ़ाए हैं.