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क्या यह आंखें धोखा दे चुकी हैं ?
#क्या यह आंखें धोखा दे चुकी हैं ?#

क्या यह आंखें धोखा दे चुकी हैं ?
बिगड़ी बातें और
काली रातें छा चुकी है।

अकेलेपन की तन्हाई है ,बस ।
सांसे रुक-रुक-सी जाए हैं ,बस ।

हर एक कदम हमारा ,
हमें दूर ले जा रहा ।
जो हमारे आपस की बातें थी ,
वह अब ना भा रहा ।

मैं हुँ अकेला और ,
देखो मेरा कौन है ?
काली रात है और ,
मेरी परछाई भी मौन है ।

मेरी परछाई छुप चुकी है ,
पर मैं कहां जाऊं ।
इस वीरह के दर्द को ,
मैं किसे बताऊं ?

यादें हुत सताती हैं ,
पर किसे मैं बताऊं ।
रातें रुलाती हैं ,
मैं रात कैसे हटाऊँ ।

क्यों प्रेमियों को इस तरह ,
खुद से लड़ना पड़ता है ।
जीते हुए भी उनको ,
हर क्षण मरना पड़ता है ।

याद आती है उसकी ,
उसकी गहरी आंखें ,
रेशम से बाल और ,
उसकी मीठी- मीठी बातें ।

आखें हमारी स्वयं
विधाता ने मिलाई थी,
यह प्रेम की लीला ,
राधे कृष्ण की बनाई थी ।

अब धीरे-धीरे हूं मान रहा :
"यह विधि का विधान था ।
जो प्रेम का हूं मैं अर्थ जाना ,
उससे मैं बहुत अनजान था।"

ये कविता / गीत उन प्रेमियो के लिए है जो पहले प्रेम व उसके अर्थ से अनजान थे पर वक्त के समंदर ने उन्हे इसका अर्थ बता दिया व उनके जिवन मे एक प्रेम का पन्ना छाप गया।

© श्रीहरि