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तस्वीर
रोज एक तस्वीर ख़ाक कर रहा हूं
क्यों रोज खुद को याद कर रहा हूं
कि अब एक तमन्ना है खुद से रूठ जाने कि
क्यों तुझसे मिलने कि नई फरियाद कर रहा हूं
उसे भी नई अन्जुमन कि तलाश है
मैं खुद चिताओं सा राख कर रहा हूं
उसके हक़ में लिखी है ज़िन्दगी सो जाने दो
बेवजह इसे जी के क्यों मैं गुनाह कर रहा हूं
कोई किसी से फ़कत मांगता भी नहीं
मौत दुआ है जिसे मैं रोज कर रहा हूं
© Narender Kumar Arya
क्यों रोज खुद को याद कर रहा हूं
कि अब एक तमन्ना है खुद से रूठ जाने कि
क्यों तुझसे मिलने कि नई फरियाद कर रहा हूं
उसे भी नई अन्जुमन कि तलाश है
मैं खुद चिताओं सा राख कर रहा हूं
उसके हक़ में लिखी है ज़िन्दगी सो जाने दो
बेवजह इसे जी के क्यों मैं गुनाह कर रहा हूं
कोई किसी से फ़कत मांगता भी नहीं
मौत दुआ है जिसे मैं रोज कर रहा हूं
© Narender Kumar Arya
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