...

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ये हवाएँ
सोचा था कि - भूल जाऊँ सबकुछ ये हवाएँ जो याद
दिलाती वो अनकही बातें।
सर्द रातोंने फिर से आग दिल मे जगाई कितनी मुश्किलों
से छोड़ आई थी मैं वो बीती रातें।।

अंजान थे कहां पता था दिल से दिल जुड़कर फिर एक
दिन बेलावारिस बन बिखरना था।
नसीबने करवटें बदल कुछ यूँ लिखा कि अजनबियों का
साथ टूटकर एकदूजे से बिछड़ना था।।

मन में रेलचेल तो आज भी वही होती है, जो होती थी
दो दिलों में कितनी सारी मीठी बातें।
तरस रहा है आज भी दिल उसी धड़कन को सुनने जो
धड़कता ही था सुनकर उसकी बातें।।

महसूस होता होगा भी या नही ये मन की वेदनाओं का
कहर प्रखरता से फ़ैला है चारों प्रहर।
कोहरा बन सिकुड़ रहा है दो दिलों के अंतर्मन को और
कर रहा है दो अंजान ज़िंदगी पे असर।।

हाँ भूलना चाहता हूँ मैं ये हवाएँ जो संग लाती है उसीको
महसूस कराती उसकी बीती बातें।
जार - जार कर देती दिल को जो ख़्वाबों ख्यालों में
आकर जगा देती नजाने कितनी रातें।।