...

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खुद रास्ता बना मंजिल के मुसाफिर
पहले अपनो ने छोड़ा
साथ मेरा
और में गेरो को अपना बनाने लगा
अपनो ने दर्द दिया
और गेरो ने दगा
में फिर से आया अपनो की
महफिल में एक टूटी उम्मीद जोड़ने
उन्होंने उससे भी आगे छोड़ा इस बार
जहा पहले आए थे छोड़ने
अब वापस केसे जाऊं
रास्ता भटक गया हूं
अपनो और गेरो के इस
दलदल में अटक गया हूं
टूटने की भी हद है
सबने आईने जैसा तोड़ा है
खुद भी नही जुड़ा
और खुदा ने भी नही जोड़ा है

अब वो किताब बन चुका हूं
जहां दर्द के सिवा कोई कस्ती नही
मिलती किसको है यहां सच्ची महोबबत
कामवक्त सच्ची महोब्बत इतनी सस्ती नही

💔
© akash Masti and inspiration