...

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आंखें अपनी।
सब देखें ,खुद को न देख पाएं,
अजीब है यारो ये आंखें अपनी।
सच,झूठ हम छुपा लेते हैं,पर
छुपाती नही कुछ आंखें अपनी।

कभी भी किसी को बसा लेती हैं,
लड़ती है, किसी से आंखें अपनी।
फिर तो गैरों की ही हो जाती हैं,
रहती नही फिर ये आंखें अपनी।

बुरी हो जाती ,कभी कभी अच्छी,
होती तो है मगर ये आंखें अपनी।
लगे जाये किसी से जब प्यार में,
दिन रात तब रोती आंखें अपनी।

रब से गुज़ारिश है न दिल दुखाए,
न रोएं फिर कभी आंखें अपनी।
खुशियां दे हमें भी हरपल रब्बा,
हस्ती रहे सदा ये आंखें अपनी।