...

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अपनी पहचान बनाने आई हूं
सदियों से बंद उन झरोकों से निकल आई हूं
मन में दबे हर दर्द के कांच को फोड़ आई हूं
बहुत भागी उस एक अंधेरे की कोठरी से
पैरों में छाले लिए बहुत दूर भाग आई हूं...