...

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"वो"

जो अंदर ही अंदर जोरो से चिल्लाता है,
और बाहर ही बाहर खिलखिलाकर मुस्कुराता है।
कमाल की बात तो तब हो जाती है,
चेहरा भी ऐसा है कि कोई समझने को तो छोड़ो,
अनुमान भी नहीं लगा पाता है।।

वो चीजें किसी को नहीं बताता है,
वो सब कुछ खुद में ही छिपाता है,
लोगों की नजर यदि मुस्कान से हट आंखों पर जाती भी है तो,
वो आंखों की नमी को घुट से पी जाता है।
और मजाल है, जो उसकी आंखों की सच्चाई को कोई भी पढ़ पाता है।।

दुःख का दरिया देखो तो कि,
एक लाइन लिखने का मौका पाते ही,
वो शब्दों का पुल बना देता है।
कमाल की बात ये है ही कि,
शब्द भी ना होते हुए वो,
लिखता ही जाता है, लिखता ही जाता है।।

वो अच्छा नहीं लिखता, चलो माना
पर जैसा भी लिखता हो, बुरा नहीं लिखता।
हाँ नहीं है वो काबिल, हर किसी को सहारे देने में,
पर कलम है उसके पास, जिससे वो सबके लिए दुआ लिखता है।
ख़ुदा सुने उसकी या, लौटा दे उसके फरमान को,
पर हर बार फरमान भेज, वो उसमें खुदा लिखता है।
चलो मान लिया, वो है थोड़ा सा कमजोर
लिखता होगा, चाहे जो भी.. जैसा भी,
पर मानना तो पड़ेगा, कि सबसे जुदा लिखता है।
© Vaishnavi Singh



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