9 views
जंजीर
इन जंजीरों को तोड़कर
रुख हवा का मोड़कर
चल पड़े हैं देखो हम
सबको पीछे छोड़कर
कब से यूं बिखरे हुए थे
गम की चादर ओढ़कर
अब चले हैं इक सफ़र पे
हिम्मत सारी जोड़कर
जलते थे जो भी हमसे
रह गए मुंह मोड़कर
जो भी चाहते थे हमें
वो चले आए दौड़कर
इक दिन ऐसा भी आएगा
आयेंगे हम लौटकर
खुशियां आएंगी उभर
गम के छाले फोड़कर ।।
© मनराज मीना
रुख हवा का मोड़कर
चल पड़े हैं देखो हम
सबको पीछे छोड़कर
कब से यूं बिखरे हुए थे
गम की चादर ओढ़कर
अब चले हैं इक सफ़र पे
हिम्मत सारी जोड़कर
जलते थे जो भी हमसे
रह गए मुंह मोड़कर
जो भी चाहते थे हमें
वो चले आए दौड़कर
इक दिन ऐसा भी आएगा
आयेंगे हम लौटकर
खुशियां आएंगी उभर
गम के छाले फोड़कर ।।
© मनराज मीना
Related Stories
16 Likes
0
Comments
16 Likes
0
Comments