...

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जंजीर
इन जंजीरों को तोड़कर
रुख हवा का मोड़कर
चल पड़े हैं देखो हम
सबको पीछे छोड़कर
कब से यूं बिखरे हुए थे
गम की चादर ओढ़कर
अब चले हैं इक सफ़र पे
हिम्मत सारी जोड़कर
जलते थे जो भी हमसे
रह गए मुंह मोड़कर
जो भी चाहते थे हमें
वो चले आए दौड़कर
इक दिन ऐसा भी आएगा
आयेंगे हम लौटकर
खुशियां आएंगी उभर
गम के छाले फोड़कर ।।

© मनराज मीना