...

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सिर्फ़ कह देना इश्क़ नही..
फक़त दो ज़िस्मों का मिलन इश्क़ नही ,
कभी रूह से ग़र रूह न मिले तो इश्क़ नही !

तूने मेरी सूरत को देखा, मुझे जाना नही ,
कभी इंतज़ार में अश़्क न बहा तो इश्क़ नही !

हर बात तुझे कह दूँ , प्यार से प्यार कर लूँ ,
कभी शिकायतें, नाराज़गी न हो तो इश्क़ नही !

तू रूठा तो मैं मनाऊँ, मैं रूठी तो तू मनाएँ ,
कभी ग़ुरुर हो तेरे मेरे दरमियां तो वो इश्क़ नही !

मज़बूत बंधन यक़ीन का, कसमें झूठी नही ,
कभी दिलों में हो ग़र कशमकश तो इश्क़ नही !

करवटों में बीते तेरी रात, मेरी भी नींद नही ,
कभी ग़र ख़ामोशी भी न पढ़ पाएँ तो इश्क़ नही !

पाक़ रिश्ता ये इश्क़ का निभाना आसान नही ,
रूह का मिलन है ये, सिर्फ़ कह देना ही इश्क़ नही !