...

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शाम का सूरज

मैं वो शाम हूं जो कभी ढलती नहीं,
मेरा सूरज ही हर रोज मुझे,
अलविदा कह कर चला जाता है,
ना जाने कितनी चाहत है उसे,
इन पहाड़ों इन दरख्तों के बाहों में सिमटने की,
जागती रहती हूं मैं इंतज़ार में उसके,
तो भला चैन उसे सो कर कैसे आता है,

कहां तक भटकूं अब उसकी तलाश में मैं,
अंधेरा तो अब मेरी भी आंखों में उतर आता है,
जलते रहना उसकी...