अल्फ़ाज़ अहसास के
तुम सुनना कभी मुझे ख़ामोशी से,
मेरे लफ्ज़ नहीं भावनाएं बोलेंगी,
तुम ही तुम मिलोगे इसमें घुले हुए,
ख्वाहिश हो तुम सदाएं बोलेंगी,
सुनो कि इक आग सी उठती है कभी,
तो कभी "लहर" शांत हो जाती है यह,
मुझमें उठने वाली तरंग की कंपन हो तुम,
ज़र्रे ज़र्रे में मौजूद हवाएं बोलेंगी,
नहीं आती मुझे प्यार इश्क़...
मेरे लफ्ज़ नहीं भावनाएं बोलेंगी,
तुम ही तुम मिलोगे इसमें घुले हुए,
ख्वाहिश हो तुम सदाएं बोलेंगी,
सुनो कि इक आग सी उठती है कभी,
तो कभी "लहर" शांत हो जाती है यह,
मुझमें उठने वाली तरंग की कंपन हो तुम,
ज़र्रे ज़र्रे में मौजूद हवाएं बोलेंगी,
नहीं आती मुझे प्यार इश्क़...