सामाजिक पशुता
स्वरूप मानते तुझे रक्षक का
फिर क्यों तूने ही वार किया
देवी कहते तुझे ममता की
फिर क्यों ऐसा संहार किया।
कहां चली गई तेरी ममता जब
चीख रहे थे दर्द में वो
तुझे लाज जरा भी न आई
इक लाचार मां जब चिल्लाई।
लेकिन कुछ नेतागण अब
घड़ियाली आंसू बहा रहे।
अपनी छाती को पीट-पीट अब
मौतों का मातम मना रहे।
तेरे ही वार के सामने तेरे ही लाल
जब प्रहार तूने किया अपने पैर से
जरा भी लाज़ नहीं आयी तुझे
वर्दी पहन जब सामने आई।
माना कि तुझ पर दबाव था
कानून का पर ऐसा भी
अधिकार ना था सविंधान का।
बेवजह मासूमों की
जिंदगी के साथ
ये कैसा अत्याचार तेरा ।
आदमी तो बदनाम ही था
पर तू तो नहीं थी फिर तू
कैसे हो गई उनमें शामिल।
आज सवाल उठ रहे तेरी ही
उस ममता के आंचल पर
संस्कार सिखाती हो अपने बच्चों को
और वार करती हो दूसरे बच्चों पर।
क्या यही तेरी डयूटी है ?
या तेरा संस्कार है?
शिकायत थी अगर
तो आवाज़ देती
अपने ही कानून को ।
हथियार बनाती
अपनी कलम को।
एक मां के सामने ही
तू बेरहम कैसे बन सकती ।
तू आत्मरक्षक बन सकती है
पर किसी का शोषण नहीं कर सकती
ऐसी उम्मीद थी हम सबको
नाज़ था तुझ पर
गर्व था तुझ पर ।
लेकिन तेरा वो आज का दृश्य
देखते ही मन घृणृत हो उठा
सम्मान दे भी तो कैसे दे
सम्मान की तो आज तुमने
खुद ही बलि जो चढ़ा दी।
अगर मन तेरा तुझे कसोटे
तो सोचना ऐसी गलती
क्या तुझे शोभा देती है?
© anu singh
फिर क्यों तूने ही वार किया
देवी कहते तुझे ममता की
फिर क्यों ऐसा संहार किया।
कहां चली गई तेरी ममता जब
चीख रहे थे दर्द में वो
तुझे लाज जरा भी न आई
इक लाचार मां जब चिल्लाई।
लेकिन कुछ नेतागण अब
घड़ियाली आंसू बहा रहे।
अपनी छाती को पीट-पीट अब
मौतों का मातम मना रहे।
तेरे ही वार के सामने तेरे ही लाल
जब प्रहार तूने किया अपने पैर से
जरा भी लाज़ नहीं आयी तुझे
वर्दी पहन जब सामने आई।
माना कि तुझ पर दबाव था
कानून का पर ऐसा भी
अधिकार ना था सविंधान का।
बेवजह मासूमों की
जिंदगी के साथ
ये कैसा अत्याचार तेरा ।
आदमी तो बदनाम ही था
पर तू तो नहीं थी फिर तू
कैसे हो गई उनमें शामिल।
आज सवाल उठ रहे तेरी ही
उस ममता के आंचल पर
संस्कार सिखाती हो अपने बच्चों को
और वार करती हो दूसरे बच्चों पर।
क्या यही तेरी डयूटी है ?
या तेरा संस्कार है?
शिकायत थी अगर
तो आवाज़ देती
अपने ही कानून को ।
हथियार बनाती
अपनी कलम को।
एक मां के सामने ही
तू बेरहम कैसे बन सकती ।
तू आत्मरक्षक बन सकती है
पर किसी का शोषण नहीं कर सकती
ऐसी उम्मीद थी हम सबको
नाज़ था तुझ पर
गर्व था तुझ पर ।
लेकिन तेरा वो आज का दृश्य
देखते ही मन घृणृत हो उठा
सम्मान दे भी तो कैसे दे
सम्मान की तो आज तुमने
खुद ही बलि जो चढ़ा दी।
अगर मन तेरा तुझे कसोटे
तो सोचना ऐसी गलती
क्या तुझे शोभा देती है?
© anu singh