...

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सामाजिक पशुता
स्वरूप मानते तुझे रक्षक का
फिर क्यों तूने ही वार किया
देवी कहते तुझे ममता की
फिर क्यों ऐसा संहार किया।

कहां चली गई तेरी ममता जब
चीख रहे थे दर्द में वो
तुझे लाज जरा भी न आई
इक लाचार मां जब चिल्लाई।
लेकिन कुछ नेतागण अब
घड़ियाली आंसू बहा रहे।
अपनी छाती को पीट-पीट अब
मौतों का मातम मना रहे।

तेरे ही वार के सामने तेरे ही लाल
जब प्रहार तूने किया अपने पैर से
जरा भी लाज़ नहीं आयी तुझे
वर्दी पहन जब सामने आई।

माना कि तुझ पर दबाव था
कानून का पर ऐसा भी
अधिकार ना था...