...

3 views

मन की चंचल सड़क
मंद मंद सी पवन का झोका
खामोशी का लिबास है ओढ़ा
गुफ्तगू मे मसरूफ था तिनका
आकर उसको किसने टोका
थौर ठिकाना की करके परवाह
बीज ढूंढे धरा की माटी
लायी बहुत पैगाम हसरते
पर ,तसव्वुर को अधीर लोचन
करवते बदल रहा क्षण
फंस गया महक का आंचल
भूत ,कल की कशमकश मे
खिच गयी है गजब सी रेखा
ओर छोर की करके परवाह
करते फिर क्यो नष्ट हीरा?
कोसना अब व्यर्थ सा है
ढीठ वक्त भी सुनता कहां है
होकर फिर भी क्लेशातुर
भ्रम का व्योम घिरा सा चहु दिश
कोटि कोटि है पहेलिया भी
खेलती अठखेलिया सी
खोकर सुध फिर से गली की
अस्त व्यस्त सी दिखे जो नगरी
त्यजकर ,हर सुख दुख भंवर का
करके वंदन निज सदन को
थामकर आभा की उंगली
भूल कर हर इक विधा को
मन की चंचल सी सड़क पर
दौड़ना चाहता है अविचल।