...

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जीत (नज़्म)
तू मुझे छोड़ के लौटा तो नहीं रोया मैं
आज भी हूँ इसी दुनिया में नहीं खोया मैं
आज भी तेरी कही बात को हम रखते हैं
तू चला आयेगा ये भी तो भरम रखते हैं
तेरी बातें जो सभी बाग़-ओ- चमन होती थी
तेरी ख़ामोशी भी तो एक सुख़न होती थी
तू जो हसता तो बहारों सा समाँ होता था
लुत्फ़ अन्दोज़ मैं होता था जहाँ होता था
सबको लगता है मुझे छोड़ दिया है तुम ने
अच्छा ख़ासा था मुझे तोड़ दिया है तुम ने
ये भी कहते हैं तेरा हिज्र मुझे मारेगा
इश्क़ की राह ये पहला तो नहीं हारेगा
अब यक़ीं कैसे दिलाऊँ के नहीं ऐसा नहीं
तुमको मालूम नहीं है कि सफ़र वैसा नहीं
इश्क़ मे हार के सब जीत लिया जाता है
जीते जी मरना यहाँ सीख लिया जाता है
अपनी इस जीत का हम जश्न मानते तो नहीं
मर भी जाएं मगर मुर्दा नज़र आते तो नहीं
बात तो ये है कि हिज्र का होना है कमाल
इश्क़ में जीते सभी हैं मगर मरना हैै कमाल

शाबान " नाज़िर"
© SN