...

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वक्त
हमने इस जीवन में अजीब सा मंजर देखा है।
वक्त के साथ खेलने वालों के,कयीयों के पीठ में खंजर देखा है।
वक्त किसी को पता नहीं क्या करा दे।
निर्धन को धनी,राजा को रंक बना दे।
वक्त रहते हुए, मैंने जीवन में दुःख का समंदर देखा है।
हमने इस जीवन में अजीब सा मंजर देखा है।
वक्त वक्त की बात है, आज हम हैं जहां,वहां कोई और था।
आग की लपटों से गुजरा रहा था मैंने,सायद उससे ओ बेखबर था।
वक्त के आगे घुटने टेक कर कमीयों चलते देखा है।
हमने इस जीवन में अजीब सा मंजर देखा है।
स्व रचित-अभिमन्यु