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#अलविदा
#अलविदा
कभी फ़ुर्सत में जो निकलोगे तुम
अपने शहर की गलियों में
सुनाएंगी तुमको ये कहानी मेरे हर दिन की
कहेंगी बात हर रात की...
कभी जो अपने घर की खिड़की से झांककर
महसूस करोगे बरसते आसमां को
मेरे भीगते हुए मन की सदायें सुनोगे
उठेंगी जो तुम्हारे ही दिल से रह रहकर...
ये विदाई भी कुछ अनोखी रही
न मिलने की आस अब
न कोई आरज़ू ही बाकी रही
ख़ुश रहो तुम और तुम्हारा शहर आबाद रहे
इसकी दहलीज पर आए हैं ये दुआ माँगकर..
जो तुमसे न कह सके कभी रूबरू
आ गए हैं तुम्हारे शहर की हवाओं को सुनाकर
कभी मुलाकात हुई भी तो अजनबी सी होगी
कि आ गए हैं तुम्हारे शहर को अलविदा कहकर ...
कि आ गए हैं तुम्हारे शहर को अलविदा कहकर ...
© संवेदना
कभी फ़ुर्सत में जो निकलोगे तुम
अपने शहर की गलियों में
सुनाएंगी तुमको ये कहानी मेरे हर दिन की
कहेंगी बात हर रात की...
कभी जो अपने घर की खिड़की से झांककर
महसूस करोगे बरसते आसमां को
मेरे भीगते हुए मन की सदायें सुनोगे
उठेंगी जो तुम्हारे ही दिल से रह रहकर...
ये विदाई भी कुछ अनोखी रही
न मिलने की आस अब
न कोई आरज़ू ही बाकी रही
ख़ुश रहो तुम और तुम्हारा शहर आबाद रहे
इसकी दहलीज पर आए हैं ये दुआ माँगकर..
जो तुमसे न कह सके कभी रूबरू
आ गए हैं तुम्हारे शहर की हवाओं को सुनाकर
कभी मुलाकात हुई भी तो अजनबी सी होगी
कि आ गए हैं तुम्हारे शहर को अलविदा कहकर ...
कि आ गए हैं तुम्हारे शहर को अलविदा कहकर ...
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