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रात भर खुद से बात करते हैं..
तू नहीं तेरे ख्यालात सही,
रात भर खुद से बात करते हैं।
रोज आते तुम परछाई बनकर कमरे में,
तेरे अक्स से ही मुलाकात करते हैं।
डरते हैं तुझे खो देने से,
इसलिए नहीं बुझाते रोशनी।
देर रात देख खिड़की चमकते,
पड़ोसी भी बातें चार करते हैं।
गलतफहमी है उन्हें किसी बड़ी तैयारी की,
क्या मालूम हम रोज तेरा दीदार करते हैं।
जो तुम न आये किसी रात
बड़े बेचैन हो जाते हैं,
फिर लिख-लिख कर ही हम रात बिताते हैं।
सुबह उन्हीं पिरोए शब्दों को
Writco पर सजाते हैं।
तेरी यादों की खुश्बू से
सुबह भी महकाते हैं।
© Joginder Thakur
रात भर खुद से बात करते हैं।
रोज आते तुम परछाई बनकर कमरे में,
तेरे अक्स से ही मुलाकात करते हैं।
डरते हैं तुझे खो देने से,
इसलिए नहीं बुझाते रोशनी।
देर रात देख खिड़की चमकते,
पड़ोसी भी बातें चार करते हैं।
गलतफहमी है उन्हें किसी बड़ी तैयारी की,
क्या मालूम हम रोज तेरा दीदार करते हैं।
जो तुम न आये किसी रात
बड़े बेचैन हो जाते हैं,
फिर लिख-लिख कर ही हम रात बिताते हैं।
सुबह उन्हीं पिरोए शब्दों को
Writco पर सजाते हैं।
तेरी यादों की खुश्बू से
सुबह भी महकाते हैं।
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