कठिन समय...!
बिखरेंगे खूब़ हलाहल...
और धरती...नभ...
आकाश हिलेंगे!
यह जीवन मंथन समय है साथी,
अब सिंहासन और
ताज हिलेंगे!!
घबराकर क्यों बैठ गए तुम
गहरे... समंदरों में
आते जाते चक्रवातों से!
अभी तो परिघट्टन
शुरू हुआ है,
अब झूठे सब विश्वास हिलेंगे!!
कोई न आए...
और धरती...नभ...
आकाश हिलेंगे!
यह जीवन मंथन समय है साथी,
अब सिंहासन और
ताज हिलेंगे!!
घबराकर क्यों बैठ गए तुम
गहरे... समंदरों में
आते जाते चक्रवातों से!
अभी तो परिघट्टन
शुरू हुआ है,
अब झूठे सब विश्वास हिलेंगे!!
कोई न आए...