...

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मुझ जैसी लड़की।।
ना दुनिया की समझ ना सही और गलत का फर्क
इश्क के रंग से रंग दिया वरक
ना तजुर्बा ना समझदारी बड़ी कमसिन थी वो
तूफान में कस्ती उतारे बड़ी मासूम थी वो
इश्क की कमाई से घर–घर खेलती
अपनी धुन में मस्त वो मीरा सी लड़की
चांद से दिल लगा कर जमीन से वफा मांगती
हवाओं से लड़ने वाली वो पतंग सी लड़की
जब आंख खुली तो थी नहीं वो अब भी छोटी सी लड़की
दिल को हथेली पर परोस कर देने वाली वो भोली सी लड़की
कहते हैं कुछ भारी सा गुजरा था उसके नरम सीने के ऊपर से
अब जरा नाप तोल कर हंसती है वो मनमौजी सी लड़की
हकीकत दरवाजे पर दस्तक दे रही थी
भला पलक झपकाती तो किसके लिए वो सपनो जैसी लड़की
समेट कर अपनी आबरू फिर कलम उठाएगी खुद अपनी कहानी लिखेगी वो जिद्दी सी लड़की
पुर्जा–पुर्जा कर जोड़ेगी अपना सीना हिम्मत कर फिर किसी से दिल ना लगाएगी वो दिलेर लड़की
लफ्जों को ढाल बनाकर हर मकाम पाएगी खुद ही खुद से बातें करने वाली वो किताबों सी लड़की
तीखी सी मीठी सी वो हिरनी सी लड़की
आईने में देखू तो मुझ जैसी,मुझ जैसी लड़की।।
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