...

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कागज़ कलम

कागज कलम और भावों का सागर जब होकर व्याकुल रुदन करते हैं......
कागज रोकर कलम तड़पकर एक तुच्छ काव्य का सृजन करते हैं......
इस रोने तडपने के मध्य भावों के झंझावत का कोलाहल है......
यूं तो काव्य है भी क्या ,देखा जाए तो शब्द भर है....



ये शब्द ज़रूरी है बवंडर को थामने के लिए....
भावों की गहराई और व्याकुलता की ऊँचाई मापने के लिए

जो पीड़ा मन की चादर को छलनी छलनी करती है
शब्द का धागा और भावों की सुई उसकी तुरपन करती है

जो तड़प किसी को दिखा न सको जो दर्द जुबां पर ला न सको
उसको छिपाना...