...

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जिद्द
मैं चल रही हुँ राह में ,अकेली नही
पकड़ी है ऊँगली मैने ,किसी अपने की
वो हँसते हैं मुझमे ,मुझे एहसास होता है
फलक पर होता है सपना, खुदा भी पास होता है
बडा है फ़ासला तो क्या खत्म ये हो ही जाएगा
मेरा विशवास है कि उनसे खुदा मुझे खुद मिलाएगा
जया जो नाम है उनका मुझे जीना सिखाता है
किसोरी ओर शरमा से होंसला बुलंद हो जाता है
मुझे उम्मीद है कि खाब मेरा राख ना होगा
बचपन से की दुआ मेरी कभी तो रंग लाएगी
मेरी तकदीर हारेगी मेरी इच्छा से वो मुझे खुद उनसे मिलाएगी