...

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प्रकृति के अटुट नियम
सूर्य प्रभात की वेला मे रोज़ पूरब मे आ जाते है,
और संध्या वेला मे पश्चिम मे ढल जाते है,
है नही नियम तो फिर क्या?
क्यो फूल काँटों से घिर कर खिलते ,मुस्काते हैl

क्यो तरंग, टूट कर भी पृतिपल, सागर को लहराते है,
क्यो कन, कन आपस मे मिलकर, जीवन संचय कर जाते हैंl

है नही नियम तो फिर क्यो,
पल पल जल कर, बाती, तिमिर को प्रकाशित कर जाती हैl

किट, फटिङ्गो की दुनिया भी अलग, नही है ,
इन नियमो से, जीवन देकर ही अपना वो, नव नवीन चेतन है पातेl

सभी नियमो को अनुश्रीत कर हि,
जीवन चक्र को संतुलित रख पाते हैं,
है धारा हमारी संचलि का,
हम संचालित हो जाते है l









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