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मत हार, कर प्रतिकार
मत थक, कर प्रयास,
सिंधु में फिर से,
मोती तलाश तुम अजय हो,
दृढ़ हो,
यहां प्रभु,
का ही तो वंश हो,
मत हार,
कर प्रतिकार,
हिम गिरि से फिर कर,
दो दो हाथ,
तुम पावन हो,
प्रचंड हो,
यहां प्रभु,
का ही तो अंश हो,
मत भाग,
कर विधान,
रण न त्याग,
कर अन्य व्यूह निर्माण तुम जीवन हो,
ज्ञान हो,
यहां प्रभु,
की ही तो संतान हो,
मत हो निराश व हताश,
कर प्रहार,
अस्त्र मत डाल,
कर विजय की फिर हूंकार,
तुम विराट हो,
शक्तिमान हो,
यहां प्रभु शक्ति, का ही तो प्रमाण हो,
© 🄷 𝓭𝓪𝓵𝓼𝓪𝓷𝓲𝔂𝓪
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