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ख़ामोश इश्क़
यह रूहानी मोहब्बत की दास्ताँ सदियों पुरानी है,
रूह से शुरू होके रूह पे ख़त्म इसकी कहानी है।

उनके बिन हरपल ये ज़िन्दगी अधूरी सी लगती है,
और उनसे दूर रहके ही पूरी ज़िंदगानी बितानी है।

सिर्फ़ मेरा ख़ुदा ही जानता मेरे ये रूहानी एहसास,
अधूरी होकर भी एहसासों में मुक्कमल जवानी है।

कुर्बान मेरे सातो जन्म उन पर हर साँस निशार है,
ज़ीस्त में खुशियाँ बिखेरे मोहब्बत की निशानी है।

वक्त के साथ गहरा हुआ ख़ामोश इश्क़ "पुखराज"
जब भी उन्हें सोचूँ तो फ़िर लगें हर रुत सुहानी है।

© पुखराज