ग़ज़ल
रह न पाए पुराने घर में हम
आ गए हैं नए सफ़र में हम
यूँ ही मंज़िल तमाशा देखेगी
यूँ ही भटकेंगे रहगुज़र में हम
रात भर जागते रहेंगे पर
उठ न पाएँगे अब सहर में हम
रात भर टूटते हैं जो तारे
उनको चुनते हैं दोपहर में हम
मर गए सींचकर जिसे "नाकाम"
अब हैं ज़िन्दा उसी शजर में हम
© नाकाम
आ गए हैं नए सफ़र में हम
यूँ ही मंज़िल तमाशा देखेगी
यूँ ही भटकेंगे रहगुज़र में हम
रात भर जागते रहेंगे पर
उठ न पाएँगे अब सहर में हम
रात भर टूटते हैं जो तारे
उनको चुनते हैं दोपहर में हम
मर गए सींचकर जिसे "नाकाम"
अब हैं ज़िन्दा उसी शजर में हम
© नाकाम