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नसीब
अरसो बाद मिला हू नसीब से ,,मैं उसको खो चुका था करीब से।।
नजरे चांद पे टिकी थी,,माना कुछ जरुरते बड़ी थी।।
हम कितने पास थे ,, जैसे तुम फलक मैं कही दूर से
जैसे अंधेरा कमरे और कमरे मैं हम और तुम थे
ये कुछ दिवारे कहा बताती है हाल साम की।।
किताबो के पन्नो से पूछो दीदार मेरे यार की।
इत्तफाक से मिलता तो छूट चुका होता ।।
जब बिछड़ने की बात आई तो ख़ूब रूठे अपने याद से।
संभाल कर उठ चुका हू , उठा नसीब से
मैं उसको खो चुका था पा के करीब से,,
अरसो बाद मिला हू नसीब से ,,मैं उसको खो चुका था करीब से।
narrated by Vishu 🌚
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