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माॅं और आज के अधिकांश परिवारों का सच
कभी हंसकर कभी मुस्कराकर टाल देती है,
बच्चों की नादानियों पर वो पर्दा डाल देती है.
कभी नाराज़ होती है तो जी भरकर डांटती है,
बच्चे जो रूठ जायें तो पसंद का थाल देती है.
पड़ जाए कोई बीमार तो बैचेन बहुत होती है,
मंहगा इलाज होते हुए भी नज़र उतार लेती है.
बुरी नज़र से दूर रखकर हर मौसम से बचाती है,
हालात चाहे जो हों कुशलता से संभाल लेती है.
जाने क्यों बदलने लगा नजरिया मानव समाज का,
बच्चे संभाल नहीं पाते माॅं को एक वो हैं जो सब को पाल लेती है.
बच्चों की नादानियों पर वो पर्दा डाल देती है.
कभी नाराज़ होती है तो जी भरकर डांटती है,
बच्चे जो रूठ जायें तो पसंद का थाल देती है.
पड़ जाए कोई बीमार तो बैचेन बहुत होती है,
मंहगा इलाज होते हुए भी नज़र उतार लेती है.
बुरी नज़र से दूर रखकर हर मौसम से बचाती है,
हालात चाहे जो हों कुशलता से संभाल लेती है.
जाने क्यों बदलने लगा नजरिया मानव समाज का,
बच्चे संभाल नहीं पाते माॅं को एक वो हैं जो सब को पाल लेती है.
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