ग़ज़ल
नये साल में यार कुछ तो नया हो
नई इक ज़मी हो नया रास्ता हो
मिरी याद तुमको ज़रा सी तो आये
नये साल में कोई ऐसी शिफ़ा हो
मिरे ज़ख्म सा पेड़ कोई न होगा
खिज़ायों के मौसम में भी यूँ हरा हो
जिसे मैंने धोखा ही धोखा दिया है
कभी तो वो मुझ से ज़रा सा खफ़ा हो।
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नई इक ज़मी हो नया रास्ता हो
मिरी याद तुमको ज़रा सी तो आये
नये साल में कोई ऐसी शिफ़ा हो
मिरे ज़ख्म सा पेड़ कोई न होगा
खिज़ायों के मौसम में भी यूँ हरा हो
जिसे मैंने धोखा ही धोखा दिया है
कभी तो वो मुझ से ज़रा सा खफ़ा हो।
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