...

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तुम्हारा नाम
आज फिर छलक गया था
ठहरे हुए एक ख़्वाब का दरिया
फिर लहलहा उठी थी
मेरी नज़रों की वीरानी
जब पुकारा तुम्हारा नाम
किसी ने स्टेशन पर
यूँ तो ऐसे इत्तेफ़ाक़ नहीं होते
और ना ही हमें उम्मीद थी
पर शहर तेरा था नाम तेरा था
आँखों ने पीछा किया तो पाया
एक छोटी सी बच्ची को
जिसने पहन रखा था तुम्हारा नाम
ओढ़ रखी थी तुम्हारी मासूमियत
एक अरसे बाद
आँखों में मुस्कान थी
© samrat rajput