तुम्हारा नाम
आज फिर छलक गया था
ठहरे हुए एक ख़्वाब का दरिया
फिर लहलहा उठी थी
मेरी नज़रों की वीरानी
जब पुकारा तुम्हारा नाम
किसी ने स्टेशन पर
यूँ तो ऐसे इत्तेफ़ाक़ नहीं होते
और ना ही हमें उम्मीद थी
पर शहर तेरा था नाम तेरा था
आँखों ने पीछा किया तो पाया
एक छोटी सी बच्ची को
जिसने पहन रखा था तुम्हारा नाम
ओढ़ रखी थी तुम्हारी मासूमियत
एक अरसे बाद
आँखों में मुस्कान थी
© samrat rajput
ठहरे हुए एक ख़्वाब का दरिया
फिर लहलहा उठी थी
मेरी नज़रों की वीरानी
जब पुकारा तुम्हारा नाम
किसी ने स्टेशन पर
यूँ तो ऐसे इत्तेफ़ाक़ नहीं होते
और ना ही हमें उम्मीद थी
पर शहर तेरा था नाम तेरा था
आँखों ने पीछा किया तो पाया
एक छोटी सी बच्ची को
जिसने पहन रखा था तुम्हारा नाम
ओढ़ रखी थी तुम्हारी मासूमियत
एक अरसे बाद
आँखों में मुस्कान थी
© samrat rajput