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आख़िर
तालीम की इतनी चमक!
रूतबा भी ख़ानदानी है।
पर बरकत जो नहीं होती;
ये नीयत की निशानी है।
ख़ूब अकड़ते बात-बात पे,
माल, दबदबा और ज़ात पे।
पर कितने बद्नीयत हैं;
बर्ताव से सब दुध-पानी है।
कोई भी अब टिकता नहीं,
क्षण में छोड़ चले जाते हैं।
ये कोई किस्मत या इत्तेफ़ाक नहीं,
बल्कि बद्ज़ुबानी है!
आख़िर ऐसी क्या बात है,
“धनक” तू ऐसा क्यों लिखता है?
इन हालातों से जुड़ी…
क्या कोई तेरी भी कहानी है?
-Amartya Dhanak Sfulingodgaar
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