A poem in relation to George Floyd homiside protests
हर शहर में दहशत सि मची है,
मजमा-ए-आम में हलचल सी मची है,
कए दिलों में रंजिष सि मची है,
रास्ते सब पथ्जड से हो गये है,
उपर बेठा वोह सोच रहा है कि,
क्या इंसानिय इसी के लिये बनी है?
हम अपने परों को हताकें...
मजमा-ए-आम में हलचल सी मची है,
कए दिलों में रंजिष सि मची है,
रास्ते सब पथ्जड से हो गये है,
उपर बेठा वोह सोच रहा है कि,
क्या इंसानिय इसी के लिये बनी है?
हम अपने परों को हताकें...