...

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बीते वक्त की सुगबुगाहट.....
रोते रोते गुजरी रातें,हर पल यह फरियाद लिए;
याद हमे उनकी बातें यह याद बदलनी चाहिए।
लगती दुनिया बदली-बदली,रुख़सत हो जाने के बाद;
थामें थे जो हाथ,अब साथ की हर शाम ढलनी चाहिए।

जिन लबों पर थीं फिसलती हुस्न की बूंदे कभी,
उन लबों से प्यार की बातें भी फिसलनी चाहिए।
जिस बदन पर थी कभी, महक-ए-गुलज़ार की;
वक्त के बढ़ने से,अब बदन की शान बुझनी चाहिए।

वादों की घनी छांव तले, तन्हाई के साथ-साथ;
वादों के पतझड़ से वफ़ा की हर बात बदलनी चाहिए।
देखे थे जो सपने कभी,घूमे थे हम साथ- साथ,
दिल टूटने से,अब सपनों की सांस टूटनी चाहिए।
© pagal_pathik