उम्र का अकेलापन...
अकेला छोड़ कर मां बाप को जब उनके बच्चे विदेश चले जाते हैं।
बेवजह ही इन बूढ़ी आंखों को वो उम्रभर बहुत ज़्यादा रुलाते हैं।
जाते जाते हाथ पकड़ कर वो झूठमूठ ही जल्दी लौट आएंगे कह देते हैं।
दिन रात यहां दोनों बस एक दूसरे से छुपकर उनका रास्ता देखते रहते हैं ।
पुराने एल्बम को छूकर फिर से अपने वही पुराने दिन खोजते रहते हैं ।
कहीं देख ना ले गलती से आसूं एक दूसरे के इसलिए बत्ती बुझा दो कहते हैं।
ऐसा नहीं कि बच्चे ज़िम्मेदार नहीं, वो नियम से पैसा भेजते रहते हैं।
अब जाएंगे तब जाएंगे वो भी बस दिन रात यही तो सोचते रहते हैं।
पता है, इन्हीं बच्चों के खातिर...
बेवजह ही इन बूढ़ी आंखों को वो उम्रभर बहुत ज़्यादा रुलाते हैं।
जाते जाते हाथ पकड़ कर वो झूठमूठ ही जल्दी लौट आएंगे कह देते हैं।
दिन रात यहां दोनों बस एक दूसरे से छुपकर उनका रास्ता देखते रहते हैं ।
पुराने एल्बम को छूकर फिर से अपने वही पुराने दिन खोजते रहते हैं ।
कहीं देख ना ले गलती से आसूं एक दूसरे के इसलिए बत्ती बुझा दो कहते हैं।
ऐसा नहीं कि बच्चे ज़िम्मेदार नहीं, वो नियम से पैसा भेजते रहते हैं।
अब जाएंगे तब जाएंगे वो भी बस दिन रात यही तो सोचते रहते हैं।
पता है, इन्हीं बच्चों के खातिर...