उम्र का अकेलापन...
अकेला छोड़ कर मां बाप को जब उनके बच्चे विदेश चले जाते हैं।
बेवजह ही इन बूढ़ी आंखों को वो उम्रभर बहुत ज़्यादा रुलाते हैं।
जाते जाते हाथ पकड़ कर वो झूठमूठ ही जल्दी लौट आएंगे कह देते हैं।
दिन रात यहां दोनों बस एक दूसरे से छुपकर उनका रास्ता देखते रहते हैं ।
पुराने एल्बम को छूकर फिर से अपने वही पुराने दिन खोजते रहते हैं ।
कहीं देख ना ले गलती से आसूं एक दूसरे के इसलिए बत्ती बुझा दो कहते हैं।
ऐसा नहीं कि बच्चे ज़िम्मेदार नहीं, वो नियम से पैसा भेजते रहते हैं।
अब जाएंगे तब जाएंगे वो भी बस दिन रात यही तो सोचते रहते हैं।
पता है, इन्हीं बच्चों के खातिर दिन रात ये दोनों बस ऐसे ही खटते रहते थे।
लाखों में एक है मेरे बच्चे सीना चौड़ा कर चमकती आंखों से कहते रहते थे।
अब देखो बाप खटिया में बीमार पड़ा, मां
भी बस खोई खोई रहती है।
बस जल्दी ही आने वाले हैं बच्चे पड़ोसियों से अक्सर यही कहती रहती है।
आज ये बिल्कुल अकेले और बेसहारा हैं इनकी पनीली आंखें कहती हैं।
वीडियो काॅल में वो हमारा दर्द क्या समझेंगे इसलिए तो मां चुप रहती है।
आज बाप मर गया, बेटे को छुट्टी नहीं मिली क्या करें नौकरी तो प्यारी है।
जिस बहू ने कभी पूछा नहीं उसने विदेश में दान दिया सचमुच वो संस्कारी है।
अब मां भी सांसे गिन रही है क्योंकि आज बेटे ने वृद्धाश्रम का पता भेजा है।
किसी ने जब उसे बेचारी कहा तो मां ने कहा ये तो उन्होंने अच्छा ही सोचा है।
मैंने सिर्फ नौ माह उनका बोझ उठाया है तो क्या वो जिंदगीभर मेरा बोझ उठाएंगे?
बाप के मरने पर तो उन्हें छुट्टी नहीं मिली पर देखना मेरे मरने पर वो ज़रूर आएंगे।
by Santoshi
बेवजह ही इन बूढ़ी आंखों को वो उम्रभर बहुत ज़्यादा रुलाते हैं।
जाते जाते हाथ पकड़ कर वो झूठमूठ ही जल्दी लौट आएंगे कह देते हैं।
दिन रात यहां दोनों बस एक दूसरे से छुपकर उनका रास्ता देखते रहते हैं ।
पुराने एल्बम को छूकर फिर से अपने वही पुराने दिन खोजते रहते हैं ।
कहीं देख ना ले गलती से आसूं एक दूसरे के इसलिए बत्ती बुझा दो कहते हैं।
ऐसा नहीं कि बच्चे ज़िम्मेदार नहीं, वो नियम से पैसा भेजते रहते हैं।
अब जाएंगे तब जाएंगे वो भी बस दिन रात यही तो सोचते रहते हैं।
पता है, इन्हीं बच्चों के खातिर दिन रात ये दोनों बस ऐसे ही खटते रहते थे।
लाखों में एक है मेरे बच्चे सीना चौड़ा कर चमकती आंखों से कहते रहते थे।
अब देखो बाप खटिया में बीमार पड़ा, मां
भी बस खोई खोई रहती है।
बस जल्दी ही आने वाले हैं बच्चे पड़ोसियों से अक्सर यही कहती रहती है।
आज ये बिल्कुल अकेले और बेसहारा हैं इनकी पनीली आंखें कहती हैं।
वीडियो काॅल में वो हमारा दर्द क्या समझेंगे इसलिए तो मां चुप रहती है।
आज बाप मर गया, बेटे को छुट्टी नहीं मिली क्या करें नौकरी तो प्यारी है।
जिस बहू ने कभी पूछा नहीं उसने विदेश में दान दिया सचमुच वो संस्कारी है।
अब मां भी सांसे गिन रही है क्योंकि आज बेटे ने वृद्धाश्रम का पता भेजा है।
किसी ने जब उसे बेचारी कहा तो मां ने कहा ये तो उन्होंने अच्छा ही सोचा है।
मैंने सिर्फ नौ माह उनका बोझ उठाया है तो क्या वो जिंदगीभर मेरा बोझ उठाएंगे?
बाप के मरने पर तो उन्हें छुट्टी नहीं मिली पर देखना मेरे मरने पर वो ज़रूर आएंगे।
by Santoshi
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