उल्फत-ए-खामोशी
खामोश थी निगाहें मेरी ,
उल्फत की राहों में
वो दौर था बरबादी का मेरी,
जो उलझ गया तेरी पनाहो में
साथ था जिनका दुआओं में मेरी,
अब वो भी है लेकिन गैरों में
वो दूर था मुझसे ना जाने क्यों ,
"क्या ख़फ़ा था मुझसे
या बेवफ़ा थी मे " ||
© adhoore khwab
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