...

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हाँ बिकते हैं....
हाँ बिकते हैं आँसू, हाँ बिकते हैं अरमाँ
के रिश्ते मगर सब अलग दाम के हैं,
हैं सस्ते भी और थोड़े महँगे भी हैं कुछ
हैं ऐसे भी कुछ जो, बस एक जाम के हैं।
हाँ बिकते हैं....
जो सस्ते हैं रिश्ते, वो पल भर टिकेंगे,
गरीबों की बस्ती में पहले बिकेंगे।
खरीदोगे क्या तुम?
बड़े काम के हैं।
हाँ बिकते हैं....
हैं ऐसे भी रिश्ते जो महँगे मिलेंगे
ये शायद मग़र थोड़े ज्यादा चलेंगे,
अगर चल पड़े तो चलें चाँद तक भी
नहीं तो ये बस रात में चल बसेंगे।
मग़र ज्यादातर इनमें बेनाम के हैं।
हाँ बिकते हैं....
हैं बिकती बफाएँ, मोहब्बत है बिकती
मग़र दाम उन सबके हैं थोड़े ज्यादा,
या कम दाम की चाहतें तुम खरीदो
या फ़िर तुम खरीदो कोई महँगा वादा।
हैं सस्ते भी वादे, मग़र ना खरीदो
वो सस्ते से वादे बस एक शाम के हैं।
हाँ बिकते हैं....


© AK. Sharma