...

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हे दुष्शासनों सुनो मेरी
हे दुष्शासनों सुनो मेरी,
भीम भी यहां.. अभी ज़िंदा है
वक्ष फाड़ कर रक्तरंजित...उस दुष्साशन का
रक्त जिसका स्वयं ही शर्मिंदा है
हे दुष्शासनों सुनो मेरी....
और केश धुलेगा फ़िर रक्त से
फ़िर द्रौपदी खिलखिलाएगी
अट्टाहस कर छाती पीट कर
अपनी उपस्थिति दर्शाएगी
मत करो मजबूर...धरती कपकपाएगी
जो आंखों से नीर नहीं अग्नि ज्वाला धधकाएगी
मत समझो शिकारी अपने को,
स्त्री.. स्त्री है.. नहीं कोई परिंदा है
हे दुष्शासनों सुनो मेरी,
भीम भी यहां.. अभी ज़िंदा है



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