...

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हे आधुनिकता
इंसानो से इन्सानियत विलुप्त किये जा रही हो
पशु पक्षियों को बेघर करने की साजिश रचे जा रही हो
छल, भ्रष्टाचार, हिंसा को अनदेखा किये जा रही हो
हे आधुनिकता, तुम किस ओर जा रही हो ?

पैदा हुए विद्वान जिससे उस गुरुकुल को नष्ट किया
अंग्रेजो की शिक्षा प्रणाली को धर्म सा अपना लिया
कही दशको से एक ही क्रिया को रटे जा रही हो
हे आधुनिकता, तुम किस ओर जा रही हो ?

मोहमाया में उलझा दिया ये संसार सारा
संस्कृती और सभ्यता को कही दूर दफन कर दिया
नग्नता और कामुकता को बढावा दिये जा रही हो
हे आधुनिकता, तुम किस ओर जा रही हो ?

सतयुग काल तो गुजर चुका
त्रेता और द्वापार भी बीत गये
घोर कलियुग के लक्षणो को अपनाये जा रही हो
हे आधुनिकता, तुम किस ओर जा रही हो ?

चार दिनो के खातिर तू इस नश्वर जग मे आया
खुली आंख सपना ये तेरा, जो दिखता सब मोह माया
काम, क्रोध, लोभ सब ये कौरवो की सेना है
बुद्धी, विवेक और ज्ञान से इनका वध तुम्हे करना है
हे आधुनिकता, तुम्हे इसी ओर तो चलना है ।

© Rohit Lokhande