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नतीजे से ज्यादा अमाल पे जोर
ख़ुदसे खफा होकर जीना भी क्या कोई जीना है ?
बहती आँसुओं को, तोहफा मानकर क्यूँ उसे भी तुम्हें अब पीना है ?

शिकस्त जो मिली है, क्या इसी वजह से दे रहा है खुदको सजा तू ?
जब अमाल पे तवज्जु न हुआ तुझसे, तो कैसे पायेगा बेहतर नतीजा तू ?

फिक्र मत कर, अब भी कोई देर नहीं हुई है तेरे संभलने की ।
गलतियों से सीखकर आगे बढ़ने से, फिर न होगी कोई भूल तेरे फिसलने की ।

चलने, गिरने और गिरकर संभलने का नाम ही तो है ज़िंदगी ।
जब सब्र ही न होगा तुझमें तो, कैसे हो पाएगा तुझसे कोई बंदगी ?

बर्दाश्त, सुकुन और हौंसलों से ही तो बाखुदा सब कुछ है जीता जा सकता ।
सबकुछ जानकर भी इंसान, इन खूबियों को खुदमें कहाँ जोर दे पाता ।।

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© सराफ़त द उम्मीदभरे क़लाम