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गम सच्चे लगते हैं।
गम सच्चे लगते हैं अब खुशियाँ झूठी जान पड़ती हैं। अपनो के शहर मे सब फरेबी जान पड़ते हैं।

क्यों न गम को अपनाऊँ मैं जिसने मुझे इतना संभाला हैं, भला कौन जाने खुशियों का ठिकाना हमारा तो गम से रिश्ता बहुत पुराना हैं।

मेरी चिंता झूठे लोग छोड़ दे वो खुश होकर भी दूसरो की जिंदगी मे आग लगाना जानते हैं। हम ऐसे लोगो का पर्दाफ़ाश करना जानते हैं।

दूसरो की खुशियाँ छींन लेने का हुनर है ये सोचकर इतराते हो। लोगों के दर्द को देखकर मुस्कुराते हो, हर पल उनके दर्द को अपनी गिरी हुई सोच से और बढ़ाते हो।

खुद की तुलना औरो से क्या करते हो हम दूसरो को खुशी देने के लिए खुद के गम को भूला देने वाले लोग हैं।

हम गम के खरीदार है तो तुम हमारी खुशीयाँ क्या छीनोगे, और हमारे गमो को खरीद सको इतनी औकात नहीं हैं तुम और तुम जैसे लोगो की।

इसलिए बस तुम्हारी झूठी खुशियों से मुझे अपना गम सच्चा लगता हैं।

Aarti kumari singh✍️

© Aarti kumari singh