...

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!! झरने से सीखा है !!
झरने से सीखा है
निरंतर बहते जाना
चिरंतन की ओर
शुभ्र धवल सी काया बनकर
जीवन को निर्मल निरंकार बनाना
अतृप्त आत्माओं को तृप्त करके
मुक्तिपथ पर ले जाना
न रहे कोई वासना न रहे कोई तृष्णा
बस बहती रहे
निरपेक्ष प्रेम की
अविरल धारा
ये ही तो झरने से सीखा है हमने................
© राजेश पंचबुधे