मकरसंक्रांति का संकल्प
खत्म हुआ खरमास,
सभी अब आलस छोरो
चावल तिल गुड़ खा कर,
अब संकल्पित हो लो
संकल्पों से सृजित,
जगत में जीने वालों
संकल्पों की महिमा,
को तुम यू न टालो
सकल विश्व प्रकटा ही तब था,
श्री हरि ने जब संकल्प लिया
सृजित हुआ सब जड़ चेतन,
यह वसुधा तभी प्रतिष्ठ हुआ
उस से पहले न थी वायु,
उस से पहले न नदिया थी
न नीला अम्बर फैला था,
न फूल न कोई कलियां थी
था शून्य और था कुछ भी नही,
अव्यक्त सृष्टि तब व्यक्त न था
एक मात्र संकल्प से ही,
सब व्यक्त हुआ सुसज्ज हुआ
इस संकल्प के बल पर,
हनुमान समुंदर पार किये
बधाए सुरसा बन उभरी,
प्रभु ने उसके उद्धार किये
धरा को मैं भैय मुक्त...
सभी अब आलस छोरो
चावल तिल गुड़ खा कर,
अब संकल्पित हो लो
संकल्पों से सृजित,
जगत में जीने वालों
संकल्पों की महिमा,
को तुम यू न टालो
सकल विश्व प्रकटा ही तब था,
श्री हरि ने जब संकल्प लिया
सृजित हुआ सब जड़ चेतन,
यह वसुधा तभी प्रतिष्ठ हुआ
उस से पहले न थी वायु,
उस से पहले न नदिया थी
न नीला अम्बर फैला था,
न फूल न कोई कलियां थी
था शून्य और था कुछ भी नही,
अव्यक्त सृष्टि तब व्यक्त न था
एक मात्र संकल्प से ही,
सब व्यक्त हुआ सुसज्ज हुआ
इस संकल्प के बल पर,
हनुमान समुंदर पार किये
बधाए सुरसा बन उभरी,
प्रभु ने उसके उद्धार किये
धरा को मैं भैय मुक्त...