...

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अच्छा लगता हैं...
युं तो लडना- झगडना अच्छा नहीं पर,
तेरे साथ लडना-झगडना अच्छा लगता हैं,
कुछ-कुछ अपनेपनसा लगता हैं,
ए रिश्ता खून सा न होते हुए भी अपना लगता हैं,
उसे बात करते देख मुझे ,
और ,मुझे सुनता देख उसे अच्छा लगता हैं,
मुझे प्यार का इज़हार करना और उसे ना कहना अच्छा लगता हैं,
मन ही मन मुस्कुराना और दिल पर पत्थर रखकर ना कहना उसे अच्छा लगता हैं,
और, ना सुनकर मेरा चहरा उदास देख उसे अच्छा लगता हैं,
फिर, मेरा रुठना और उसका मनाना अच्छा लगता हैं,
उसे मेरे फिर से इज़हार करने का इंतजार करना अच्छा लगता हैं,
और, मुझे उसे इंतजार करते देख अच्छा लगता हैं..

जो भी हो खून सा न होते हुए भी ए रिश्ता अपनेपन सा लगता हैं,
वो शख्स अपना लगता हैं...
© d. k. makvana