...

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अकेला हूँ मैं
हज़ारों की भीड़ है, ना दिखता मुझे मेरा मीत है.
ना दोस्त हैं और ना साहरा, मैं भटकता अकेला बेचारा.
बहूतओ को जानता हूँ, लेकिन किसी को अपना नहीं पाता हूँ.
कही खो सा गया है मेरा ये दिल, शायद किसी और ही दुनिया में ही जायेगा मिल.
आज अंधेरे से मोहबत हो गई है, शायद ये रोशनी आँखो मे चुब ने लगी है
अपने आप को अकेले कर दिया है, इस दुनिया से मेरा मन जो भर गया है
आज तो चाँद भी अकेला है, शायद मेरा साथ देने निकला है.
कितना अकेला हूँ मैं, शायद इसलिए स्नाटे से दिल लगा बैठा हूँ मैं.