...

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मेरी क़लम - मेरी दास्तान…
है मेरे लफ़्ज़ों के बयान
अब यह कलम से बह रहे है,
बूँद-बूँद से बन कर शब्द
अब काग़ज़ पे रह रहे है…
स्याई दे रही अपना योगदान
अपने रंग से कह रही है ।
फीका ना पड़ना कभी
शब्दों की दास्तान लिखी जा रही है …

सच की सचाई ज़िंदा रहती है
अगर कोई चाहे,
इनक़लाब हमेशा ज़िंदा रहता है
अगर कोई चाहे…
आज़ादी मिल जाती है संघर्ष से
अगर कोई चाहे,
मौत की सजा मिलती है कातिल को
अगर कोई चाहे…

मुसाफ़िर हूँ दुनियाँ में
मेरी मौत खुदा ने लिखी है ।
जी रहो हूँ ज़िंदगी के वो पल
जो बात खुदा ने लिखी है…
आँखें बंद कर सो जाता हूँ
जो रात खुदा ने लिखी हैं,
अभी घड़ी बीत रही है
जो बूँद साँसों की ख़ुदा ने लिखी है…

एक-एक कर लिखने है
वो सवाल मेरी ज़िंदगी में,
मैं ढूँढ रहा “जिंद”
उन सवालो के जवाब मेरी ज़िंदगी में…
पता करना कौन है वो
जो ज़िंदगी के किनारे दौड़ रही है,
मेरे शब्दों की जानेमन
मेरी जान क़लम की बूँद लौट रही है…


#जलते_अक्षर

© ਜਲਦੇ_ਅੱਖਰ✍🏻