...

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शायरियां
जाने क्यूँ उनकी मुस्कुराहट का तलबग़ार रहता हूँ मैं
जबकि हर बार वो मुझे घायल कर जाती है

ग़ज़ल जैसे सँवारी हुई हो बयाज़ में
एसे सिमटी हुई आज वो चादर में

हाए! कितनी नसीबदार है ज़ुल्फ़ें तेरी
हरदम तेरे रुखसार जो चूमती है

तेरा नाम सुनकर ही, गुलाबी हो उठता हूँ
कैसे कहती मुझे फ़िर, 'तू प्यार नहीं करता'

तलब़ उट्ठी है आज शराब़ की मुझे
आ इधर कि तेरे लब़ों का लम्स लूँ
लम्स - छुअन

आह भरी उन्होंने जब पाँव पर पाँव फेरा
अच्छा है जान गए वो लुत्फ़ वस्ल का

सोचा ना था उनका लम्स भी पा सकूँगा
आज वो ही मेरी ज़ानू गर्म...